adsense code

Blog Archive

visiter counter

Website counter

join this group

Subscribe to Deciples-of-Sudhanshujimaharaj

Powered by us.groups.yahoo.com

slideshow different poses of GUGRUJI

slideshow

Thursday, August 6, 2015

गंगा तट पर aik kahani





गंगा तट पर एक ऋषि का आश्रम थाजिसमें अनेक छात्र शिक्षा प्राप्त करते थे। जब शिष्यों की शिक्षा पूरी हो जाती और वे अपने घर वापस जाने लगते



तो ऋषि से पूछते कि गुरु दक्षिणा में क्या देंऋषि कहते कि तुमने जो पाया हैसमाज में जाकर उस पर अमल करो,अपने पैरों पर खड़े होसच्ची कमाई करो और फिर एक साल बाद तुम्हारा जो दिल चाहे वह दे जाना।

आश्रम छोड़कर जाने के बाद शिष्य अलग-अलग पेशेअपनाते। अपने पेशेअपने कामकाज से जिसे जो कमाईहोतीउसका कुछ हिस्सा वह श्रद्धापूर्वक ऋषि को दे दियाकरता था। एक बार आश्रम में एक अत्यंत सीधा-सादा शिष्य आया। वह साधारण गृहस्थ था। वह दिन भर मेहनत करके अपने परिवार का पालन पोषण करता था लेकिन उसके अंदर कुछ सीखने की तीव्र इच्छा थी इसलिए वह आश्रम में चलाआया था। उसने अपने व्यवहार से सबका दिल जीत लिया। ऋषि उसे स्नेहपूर्वक पढ़ाया करते थे। जो कुछ उसे सिखाया जाताउस पर वह मनोयोग से अमल करता था।


जब उसकी शिक्षा पूरी हुई तो उसने भी पूछा, 'गुरु जी दक्षिणा में क्या दूं?' ऋषि ने उससे भी वही कहा जो वह और शिष्यों से कहा करते थे। वह चला गया और एक साल बाद लौटा। बोला, 'दक्षिणा देने आया हूं।ऋषि उसे देखकर बड़े खुश हुए,फिर उन्होंने पूछा, 'क्या लेकर आए हो बेटा?' उस शिष्य ने दस लोगों को खड़ा कर दियाजो उसके गांव के थे। उसने कहा, 'मैं गुरु दक्षिणा में ये दस नए शिष्य लाया हूं।ऋषि ने पूछा, 'किसलिए?' उसने कहा, 'जो शिक्षा आपने मुझे दी थी,मैंने उसे इन तक पहुंचाया। उतने से ही इनका जीवन संवर गया। अब आप इन सब को अपना शिष्य बना लें ताकि इतने लोग और आपके बताए रास्ते पर सही तरीके से चल सकें।'ऋषि ने प्रसन्न होकर कहा, 'तुमने मुझे अब तक की सबसे अच्छी गुरु दक्षिणा दी है।

No comments:

Post a Comment