----- Original Message -----
From: Madan Gopal Garga
Sent: Thursday, September 02, 2010 3:51 PM
Subject: [GURUMATA] बेटी के सुखी जीवन के लिए
* ससुराल पक्ष के लोग और उसके पति को उनकी आदतें,
स्वभाव , रुचियाँ समझने और उनके साथ तालमैल मिलाने का अवसर है !
* हर बात में बेटी का पक्ष न लें ! उसे त्याग ,समर्पण ,सहयोग ,
एवं प्रत्येक के साथ मधुर व्यवहार की शिक्षा दें !
* ससुराल वाले बहू को बेटी मानें यह बहुत अच्छा हे लेकिन
बहू ससुराल में स्वंय को बेटी मानने की भूल कभी न करे !
*क्योकि बेटी अपने माता पिता के घर में माता-पिता और भाइ -बहन इत्यादि से अपेक्षा और अपने कार्य के प्रति उपेक्षा रखे तो चलता है लकिन ससुराल में यही अपेक्षा और उपेक्षा भारी कष्ट का कारण बनती है !
* अगर किसी से कोई कठोर बात कहने की आवश्यकता पडे यो उसे मधुर शब्दों में ही कहना चाहिए !
* पति के घर में सबकुछ पिता के घर जैसा कभी नही होता !
इसलिए बेटी को ससुराल में ससुराल की परिस्थितियां ,वहां क्र अभाव -प्रभाव ,लोकरीति,व्यवहार ,रीति तथा कुल परम्पराओं के अनुसार जीवन जीने की प्रेरणा दें !
*अगर कोई अच्छी बात अच्छी आदत को बेटी वहां के लोगों में
डालना चाहती हे तो बडी सावधानी ,धैर्य एवं धीरे धीरे और उसका स्वयं आचरण करके प्रारंभ करे अन्यथा वहां के लोगो का अहंइसे सहन नहीं कर पायेगा!
*पति को उसके माता पिता ,भाई बहन के प्रति दायित्वों से विमुख करने का प्रयास कभी न करें इससे मनों में कटुता आती है !
*स्त्री पर तीन कुलों के निर्माण का दायित्व होता है उसे इस गरिमा को कभी नहीं भूलना चाहिए !
*इस महान कार्य की पूर्ति वह प्रेम ,सहनशीलता सदव्यवहार ,सदाचरण एवं त्यागपूर्ण जीवन से ही कर सकती हैं !
धर्मदूत जुलाइ 2010 से !
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Madan Gopal Garga द्वारा GURUMATA के लिए 9/02/2010 03:48:00 PM को पोस्ट किया गया
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