अवगुण
- गुरुजी मेरे अवगुण चित्त न धरो ,
सम-दर्शी हे नाम तिहारो ,
चाहो तो पार करो !
ऐक नदिया ऐक नार कहावत
मैलो ही नीर भरो
जब मिल करके ऐक वरन भय
सुरसरी नाम परो
गुरुज़ीमेरे-------
इक लोहा पूजा में राखत
इक घर बंधिक परो
पारस गुण अवगुण नहीं चितवत
कचन वरन करो
गुरुजी मेरे--------
यह माया भ्रम जाल कहावत
सूरदास सगरो
अबकि बार मोहे पार उतारो
नहीं प्रण जात टरो
गुरूजी मेरे ------
अवगुण किय तो बहुत किए
और करत ना मानी हार
चाहे बंदा बक्षिये चाहे गर्दन मार
गुरुजी मेरे -----
भूकन को मेंने भोजन न दीना राम
प्यासन को जल नहीं दीना राम
नगंन को वस्त्र नहीँ दीने राम
देतन को भी रोक दिओ
गुरुजी मेरे -----
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